बजट शब्दावली
कर राजस्व: सरकार द्वारा लगाए गए तमाम करों व शुल्क से प्राप्त होने वाली धनराशि को "कर राजस्व" कहते हैं। जैसे आयकर, कॉर्पोरेट टैक्स, सेवा कर, GST, इतियादी।
गैर कर राजस्व या अन्य राजस्व: सरकारी निवेश पर ब्याज व लाभांश, सरकार की अन्य सेवाओं पर प्राप्त होने वाले तमाम शुल्क आदि शामिल होते हैं।
राजस्व प्राप्तियां: कर राजस्व और अन्य राजस्व को मिलाकर प्राप्त होने वाली कुल धनराशि को सरकार की राजस्व प्राप्तियां कहते हैं।
राजस्व खर्च: सरकारी विभागों व विभिन्न सेवाओं के संचालन पर खर्च होने वाली रकम, सब्सिडी, सरकारी कर्ज पर ब्याज, राज्य सरकारों को अनुदान इतियादी इसमें शामिल हैं। राजस्व खर्चों से कोई भी परिसंपत्ति या भौतिक उपलब्धि हासिल नहीं होती हैं।
राजस्व घाटा: कुल राजस्व खर्च और राजस्व प्राप्तियों के अंतर को राजस्व घाटा कहा जाता है।
पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipt ): सरकार द्वारा आम जनता व रिज़र्व बैंक से लिए जाने वाले कर्ज, विदेशी सरकारों व संस्थानों से प्राप्त होने वाले ऋण और राज्यों इतियादी द्वारा वापस किये गए क़र्ज़ इसमें शामिल हैं।
पूंजीगत भुगतान या पूंजीगत खर्च: जमीन, मकान, मशीनरी, आदि की खरीद पर सरकारी खर्च और राज्य सरकारों, केंद्र शाषित प्रदेशों, सरकारी कंपनियों को दिए जाने वाले कर्ज वगैरह इसके अंतर्गत आते हैं।
बजट घाटा: कुल राजस्व-पूंजीगत खर्चों और कुल राजस्व-पूंजीगत प्राप्तियों के अंतर को बजट घटा कहते हैं।
राजकोषीय घाटा: बजट घाटे को पाटने के लिए सरकार द्वारा दिए जाने वाले क़र्ज़ व उसपर अन्य देनदारियों को ही राजकोषीय घाटा कहते हैं। बजट में सबसे ज्यादा इसका ही इस्तमाल किया जाता है।
इसे कुछ अलग ढंग से भी समझा जा सकता है। मान लीजिये किसी व्यक्ति की कुल सालाना आमदनी एक लाख रूपए हैं और उसका साल भर का खर्च एक लाख 20 हज़ार रूपए हैं तो उसे अपने खर्चों को पूरा करने के लिए 20हज़ार रूपए का क़र्ज़ कहीं से लेना पड़ेगा। इसका मतलब यही हुआ कि वह आदमी सालाना २०हज़ार रूपए के घाटे के साथ अपना परिवार चला रहा है। अगर वह किसी अन्य वैध तरीके से अपनी आय नहीं बढ़ाएगा तो उसका यह घाटा बढ़ता चला जायेगा।
ठीक यही बात सरकार पर भी लागू होती है। ऐसी हालत में सरकार के लिए यह जरुरी होता है कि या तो वह अपने अनावश्यक खर्चों में कटौती करे या गैर जरुरी सब्सिडी नहीं दे। साथ ही लोगो पर राजस्व बढ़ाये।
अनुदान मांग: विभिन्न मंत्रालयों व सरकारी विभागों के खर्च अनुमानों को अनुदान मांग के रूप में सालाना वित्तीय वक्तव्य में शामिल किया जाता है। इसे लोकसभा में पारित करवाना पड़ता है।
विनियोग विधेयक ( एप्प्रोप्रिएशन बिल): लोकसभा में अनुदान मांगो को मंजूरी मिलने के बाद इस धनराशि को भारत कि समेकित निधि से निकला जाता है। इस निधि से तभी कोई धन निकला जा सकता है, जब इसके लिए विनियोग विधेयक तैयार कर उसमे यह राशि शामिल की जाए और उसे संसद की मंजूरी मिल जाए।
समेकित निधि: सरकार द्वारा करों, कर्ज़ों, बैंको, व सरकारी कंपनियों के लाभांश वगैरह के जरिये जुटाई जानी वाली राशि भारत की समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फण्ड) में ही डाली जाती है। संसद की मंजूरी के बगैर इसका एक पैसा भी खर्च नहीं किया जाता है।
सालाना वित्तीय वक्तव्य: बजट के कुल 7 दस्तावेजों में से सबसे प्रमुख दस्तावेज को सालाना वित्तीय वक्तव्य (Financial Statement) कहते हैं। इसमें सरकार की तमाम प्राप्तियों व खर्चों या आवंटन का जिक्र किया जाता है।
वित्त विधेयक: नए टैक्स लगाने, मौजूदा कर ढांचे को स्वीकृत अवधी के बाद भी जारी रखने और कर ढाँचे में संशोधन से सम्बंधित सरकारी प्रस्तावों को वित्त विधेयक के जरिये ही संसद में पेश किया जाता है ताकि उसकी मंजूरी मिल सके।
राष्ट्रिय ऋण: केंद्र सरकार पर घरेलु व विदेशी कर्जदाताओं के कुल कर्ज बोझ को राष्ट्रिय ऋण कहा जाता है।
सार्वजनिक ऋण: रास्ट्रीय ऋण के साथ-साथ राष्ट्रीयकृत उद्योगों और स्थानीय प्राधिकरणों के कुल क़र्ज़ बोझ को सार्वजानिक ऋण कहा जाता है।
ट्रेजरी बिल: सरकार काम अवधी वाले कर्ज ट्रेजरी बिलों के जरिये ही जुटती है।
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