भारत का भूगोल (Indian Geography)
भौतिक खण्ड
गुजरात में सर्वाधिक क्रीक होने के कारण गुजरात की तटीय सीमा सबसे लम्बी है मिनिकाॅय व लक्षद्वीप के मध्य 9º चैनल एवं मालदीव व मिनिकाॅय के बीच 8º चैनल गुजरती है। अण्डमान और निकोबार को 10º चैनल अलग करता है। जबकि ग्रेड चैनल इन्दिरा प्वाइन्ट को इण्डोनेशिया से अलग करता है।
भारत की प्रादेशिक समुद्री सीमा क्षेत्र 12 समुद्री मील की दूरी तक है जबकि देश का अनन्य आर्थिक क्षेत्र आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक है।
सीमावर्ती देश :- भारत के निकटतम पड़ोसी देश अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार, बंग्लादेश, पाकिस्तान व श्रीलंका है। श्रीलंका भारत की मुख्य भूमि से पृथक है जिसे पाक जल सन्धि भारत भूमि से जोड़ती है।
भारत के पड़ोसी देशों की सीमाओं को स्पर्श करने वाले राज्य :-
कुछ महत्वपूर्ण सीमा रेखा :-
भारत की भू-गर्भिक संरचना :-
भारत को भू-गर्भिक संरचना के आधार पर तीन भांगों में बांटा जा सकता है।
(a) दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार :- यह पठार विश्व की प्राचीनतम चट्टानों से निर्मित है जो गोण्डवाना लैण्ड का भाग है प्रायद्वीपीय भारत की संरचना में निम्नलिखित क्रम से चट्टानें मिलती हैं।
(b) आर्कियन क्रम की चट्टानें :- नीस एवं शिष्ट के रूप में रूपान्तरित हो चुकी थी। ये चट्टाने भारत की अत्यन्त प्राचीन प्राथमिक चट्टानें हैं। बुन्देलखण्ड नीस बंगाल नीस एवं नील गिरिनीश इस चट्टान के उदाहरण हैं।
(c)धारवाड़ क्रम की चट्टानें :- इस क्रम की चट्टाने आर्कियन क्रम की प्राथमिक चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से बनी परतदार चट्टानें हैं। ये चट्टानें जीवाश्म विहीन है। लौह अयस्क, तांबा, स्वर्ण इस क्रम की चट्टानों में पाये जाते हैं। सर्वाधिक खनिज भी इसी चट्टानों में पाये जाते हैं। कर्नाटक के धारवाड़ एवं बेलारी जिला, अरावली श्रेणियों, बालाघाट, रीवा, छोटानागपुर आदि क्षेत्रों में ये चट्टानें पायी जाती हैं।
(c) कुड़प्पा क्रम की चट्टानें :- इस क्रम की चट्टानों का निर्माण धारवाड़ के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है। जीवाश्म की मात्रा इसमें भी कम पायी जाती है। कृष्णा घाटी, नल्लामलाई पहाड़ी क्षेत्र पापाघानी व चेमांर घाटी आदि में ये चट्टानें मिलती हैं।
(d) विन्ध्य क्रम की चट्टानें :- इनका विस्तार राजस्थान के चित्तौड़गड़ से बिहार के सासाराम क्षेत्र तक है। विंध्य क्रम के परतदार चट्टानों में बलुआ पत्थर मिलते हैं। इनका निर्माण कुड़प्पा चट्टानों के बाद हुआ है। विन्ध्य क्रम की चट्टानों का एक विस्तृत भाग दक्कन टेªप से ढका हुआ है।
(e) गोंडवाना क्रम की चट्टानें :- कोयला खनिज प्रमुखता से मिलता है। दामोदर महानदी और गोदावरी व उसकी सहायक नदियों में इन चट्टानों का सर्वोत्तम रुप मिलता है।
(f) दक्कन ट्रैप :- इस टैªप का निर्माण मेसोजोइक महाकल्प के क्रिटेशियस कल्प में हुआ। इस क्षेत्र में काफी मोटाई तक बैसाल्टिक लावा का जमाव मिलता है।
A. प्रायद्वीपीय पठार का महत्व :- पश्चिमी घाट के समतल उच्च भागों पर अत्यधिक वर्षा व लैटराइट मिट्टी के पाये जाने से यहाँ मसालों, चाय, काॅफी की खेती होती है। प्रायद्वीपीय पठार के शेष भागों में लाल मिट्टी पायी जाती है जहाँ मोटे अनाज, चावल, तम्बाकू एवं सब्जियों की खेती होती है। पश्चिमीघाट सदाबहार वन से आच्छादित है जिसमें सागवन, देवदार, आबनूस, महोगनी, चंदन, बांस आदि वनों की लकड़ियां मिलती हैं।
प्रायद्वीपीय पठार खनिज भंडार के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। सोना, तांबा, कोयला, लोहा, यूरेनियम, बाक्साइट आदि खनिज यहाँ प्रमुखता से मिलते हैं। खनिज संसाधनों का प्रचुर भंडार होने के कारण छोटा नागपुर पठार को ’भारत का रूर’ कहते हैं।
B. उत्तर की विशाल पर्वतमाला :- हिमालय के निर्माण में कोबर का भू-सन्नति सिद्धान्त व हैरी हेस का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त सर्वाधिक मान्य है। कोबर ने भू-स्ननतियों को ’पर्वतों का पालना’ कहा है।
वर्तमान समय में प्लेट विर्वतनिक सिद्धांत (’हैरी हेस द्वारा प्रतिपादित) हिमालय की उत्पत्ति की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट की ओर भारतीय प्लेट उत्तर-पूर्वी दिशा में गतिशील हुआ। कुछ करोड़ वर्ष बाद में ये भू-भाग अत्यधिक निकट आ गये, जिनसे टेथिस के अवसादों में वलन पड़ने लगा एवं हिमालय का उत्थान प्रारम्भ हो गया। फलस्वरूप पूर्व हिमालय की सभी शृंखलाएं एक करोड़ वर्ष पहले अपना आकार ले चुकी थी। सेनोंजोइक महाकल्प के इयोसीन व ओलीगोसीन कल्प में बृहद् हिमालय का निर्माण हुआ जबकि पोरवार क्षेत्र के अवसादों के वलन से लघु हिमालय का निर्माण मायोसीन कल्प में हुआ। प्लायोसीन कल्प में उपरोक्त दोनों श्रेणियों के द्वारा लाए गये अवसादों से शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ। हिमालय अभी भी निर्माण प्रक्रिया से गुजर रहा है, यह एक युवा पर्वत है।
C. उत्तर भारत का विशाल मैदानी भाग :- इस विशाल मैदान का निर्माण क्वार्टनरी या नियोजोइक महाकल्प के प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन कल्प में हुआ है। यह भारत की नवीनतम भू-गर्भिक संरचना हे। हिमालयी व दक्षिण भारतीय नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के जमाव से यह विशाल मैदान निर्मित हुआ है। इसके नए जलोढ़ ’खादर’ एवं पुराने जलोढ़़ ’बांगर’ कहलाते हैं। कोयला एवं पेट्रोलियम के क्षेत्र इस मैदानों में पाये जाते हैं
भारत के प्राकृतिक विभाग :-
भारत को उच्चावच एवं संरचना के आधार पर भारत को पाँच प्राकृतिक विभागों में बांटा जा सकता है-
A. उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र :- भारत के उत्तरी सीमा पर विश्व की नवीनतम मोड़दार पर्वत-श्रेणियाँ पायी जाती हैं, जो विश्व की सबसे ऊँची एवं पूर्व पश्चिम में विस्तृत सबसे बड़ी पर्वतमाला है। हिमालयी पर्वत श्रेणियां प्रायद्वीपीय पठार की ओर उत्तल एवं तिब्बत की ओर अवतल है। पश्चिम से पूर्व की ओर पर्वतीय भाग की चैड़ाई घटती व ऊँचाई बढ़ती है और ढाल भी तीव्र होता जाता है।
उत्तर के पर्वतीय क्षेत्र को चार प्रमुख पर्वत श्रेणी क्षेत्रों में बांटा जाता है-
1. ट्रांस हिमालय क्षेत्र :- ट्रांस हिमालय का निर्माण हिमालय से पूर्व हो चुका था। इसका क्षेत्र मुख्यतः पश्चिमी हिमालय है। काराकोरम लद्दाख, जास्कर आदि इसकी महत्वपूर्ण श्रेणियां है। के-2 गाडविन अस्टिन काराकोरम श्रेणी की सर्वोच्च चोटी है जो भारत की भी सर्वोच्च चोटी है। ’सिंधु-साग्यों श्यूचर जोन ट्रांस हिमालय को बृहद हिमालय से अलग करता है।
2.बृहद हिमालय :- मेन सेंट्रल थ्रस्ट ;डब्ज्द्ध बृहद हिमालय को लघु हिमालय से अलग करती है। हिमालय की सर्वोच्च श्रेणी है जिसकी औसत ऊंचाई 6000 मी0 है जबकि चैड़ाई 120 से 190 कि0मी0 तक है। एवरेस्ट (8852मी) कंचनजंघा (8558) नंगा पर्वत, नदंा देवी, कामेर व नामचा बरवा आदि महत्वपूर्ण शिखर इसी हिमालय के हैं।
3. लघु या मध्य हिमालय :- ’मेन बाउड्री फाल्ट’ (MBF) लघु हिमालय को शिवालिक हिमालय से अलग करती है। इस हिमालय की औसत चैड़ाई 80-100 किमी0 एवं सामान्य ऊँचाई 3700 से 4500 मी0 है। पीरपंजाल, धौलाधर, मंसूरी, नागटिब्बा एवं महाभारत श्रेणियां इसी हिमालय की पर्वत श्रेणियां हैं। शिमला, कुल्लू, मनाली, मसूरी, दार्जिलिंग आदि यहाँ के स्वास्थ्यवर्द्धक पर्यटन स्थल हैं।
4.शिवालिक श्रेणी या वाह्य हिमालय :- शिवालिक हिमालय अपने दक्षिणी तराई भाग से ’हिमालयन फ्रन्ट फाल्ट’ ;भ्थ्थ्द्ध से अलग होता है। शिवालिक हिमालय 10-50 किमी0 चैड़ा और 900 से 1200 मी0 ऊँचा है यह हिमालय का नवीनतम भाग है। शिवालिक और लघु हिमालय के बीच कई घाटियां हैं जिसमें एक काठमांडू भी है। पश्चिम में इन्हें दून या द्वार कहते हैं जैसे-देहरादून, हरिद्वार।
5.हिमालय क्षेत्र में अनेक दर्रे होते हैं जिसमें काराकोरम शिपकिला, नाथूला, बोमाडीला आदि हैं। काराकोरम दर्रा भारत का सबसे ऊँचा दर्रा है। श्रीनगर से गिल-गित को जोड़ने वाले दर्रे का नाम बुर्जिला है। जासकर श्रेणी में स्थित जोजिला दर्रा श्रीनगर को लेह से जोड़ता है। बनिहाल दर्रा जम्मू को श्रीनगर से जोड़ता है, इसी दर्रे में जवाहर सुरंग भी स्थित है। शिपकिला दर्रा शिमला से तिब्बत को तथा बाड़ालाचाला मंडी से लेह को जोड़ता है। थांगला, मानाला, मुलिंगला नीतिपास लिपुलेख कुमाऊ श्रेणी में स्थित उत्तराखण्ड के दर्रे हैं। नाथूला एवं जेलिपला दर्रा सिक्किम में स्थित हैं जिसका व्यापारिक महत्व है। नाथूला दर्रा चीनी क्षेत्र में तिब्बतीय पठार की चुंबी घाटी में खुलता है जो भारत और चीन के मध्य व्यापार का मुख्य मार्ग है। बोमडिला या बुमला, यांगयाप दर्रा अरूणाचल प्रदेश में स्थित है यांगयाप दर्रे से ही ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है जबकि सतलज नदी शिपकिला दर्रे से भारत के हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। म्यामार सीमा पर दीफू या पांगसाड दर्रा अरूणाचल प्रदेश में जबकि तुजु दर्रा मणिपुर में स्थित है।
नोट :-
पश्चिम से पूर्व दर्रों का क्रम – काराकोरम-बारालाचाला-
शिपकिला-थांगला-मानाला-नीतिपास-लिपुलेख-नाथुला-जेलिपला-यांगयाप दर्रा-दीफू है।
नोट :- बारालाचाला दर्रा से चिनाव नदी भारत में प्रवेश करती है।
नदियों के द्वारा निर्मित हिमालय क्षेत्र के प्राकृतिक भाग :-
(2) कुमायूँ हिमालय :- ये प्राकृतिक क्षेत्र सतलज और काली नदियों के बीच 320 किमी0 की दूरी में फैला हुआ है। इसका विस्तृत क्षेत्र उत्तराखण्ड में पड़ता है। नंदादेवी, कामिठ और बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल आदि इसके प्रमुख शिखर है।
(3) नेपाल हिमालय :- इस प्राकृतिक देश का विस्तार काली और तिस्ता नदियों के बीच लगभग 800 किमी0 दूरी के बीच में फैला है, यहाँ हिमालय की चैड़ाई अत्यधिक कम है किन्तु हिमालय के सर्वोच्च शिखर नेपाल हिमालय में ही पाये जाते हैं जैसे-एवरेस्ट, कंचनजंघा मकालू।
(4) असम हिमालय :- यह हिमालय तिस्ता व दिहांग नदियों के बीच फैला हुआ है।
प्रायद्वीपीय पठार :- प्रायद्वीपीय पठार त्रिभुजाकार आकृति लिए हुये प्राचीन गोण्ड वाना भूमि का भाग है, अरावली, राज्यमहल व शिलांग की पहाड़िया इस पठार की उत्तरी सीमा बनाती हैं। इस पठार की औसत ऊँचाई 600-900 मी0 है। प्रायद्वीपीय पठार का ढाल उत्तर-पूर्व की ओर है जबकि दक्षिणी में पूर्व की ओर है। प्रायद्वीपीय पठार अनेक भागों में विभक्त है।
मालवा, बैतूल व बघेलखण्ड का पठार :- यह पठार मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस पठार का विस्तार उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश।
बुंदेलखण्ड का पठार :- इस पठार का विस्तार मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में है।
रायल सीमा का पठार :- इसका विस्तार कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में है।
शिलांग का पठार :- यह पठार मेघालय राज्य में स्थित है।
हजारीबाग व छोटानागपुर पठार :- इसका विस्तार झारखण्ड राज्य में है।
प्रायद्वीपीय पठार अत्यधिक घर्षित प्राचीन पठार हैं। इस पठार में स्थित अरावली श्रेणी फ्री-केनबियन काल की चट्टानों से निर्मित अत्यधिक प्राचीन व अवशिष्ट पर्वतमाला है जिसका विस्तार गुजरात से दिल्ली तक है। अरावली पर्वतमाला का सर्वोच्च शिखर माउण्ट आबू का गुरु शिखर है। अत्यधिक पुराना व घर्षित मोड़दार पर्वत श्रेणी का उदाहरण विंध्याचल पर्वत है। यह पर्वत उत्तरीय भारत को दक्षिणीय भारत से अलग करता है, इसकी ऊँचाई 700-1200 मी0 है एवं लम्बाई 1050 किमी0 है प्रायद्वीपीय पठार में ब्लाक पर्वत का उदाहरण सतपुड़ा पर्वत है जिसके दोनों ओर नर्मदा एवं ताप्ती नदियाँ हैं। प्रसिद्ध भू-भ्रंश घाटियाँ बनाती है। सतपुड़ा पर्वत की सर्वोच्च ऊँचाई महादेव पहाड़ी के धूपगड़ में मिलती हैं। सोन एवं नर्मदा नदियों का उद्गम मेवाड़ पहाड़ियों के सर्वोच्च शिखर अमरकंटक से है। दक्षिण प्रायद्वीप का एक अंग गारो-खासी-जयंतिया (मेघालय में) भी है। छोटा नागपुर स्थित रांची का पठार सम्प्रदाय मैदान का उदाहरण है। खनिज भंडार की दृष्टि से सम्पन्न होने के कारण छोटा नागपुर पठार को भारत का रूर’ भी कहा जाता है।
पश्चिमीघाट का विस्तार ताप्ती के मुहाने से लेकर कन्याकुमारी तक लगभग 1600 किमी0 क्षेत्र में है। पश्चिमी घाट वास्तविक पर्वत श्रेणी न होकर प्रायद्वीपीय पठार का ही एक भ्रंश है। पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग को सहयाद्री कहा जाता है। पश्चिमी घाट के प्रमुख दर्रों में थाल घाट, भोरघाट, पाल घाट आते हैं। थालघाट दर्रे से ही मुंम्बई, नागपुर, कोलकाता, रेलमार्ग व सड़क मार्ग निकलते हैं। भोरघाट जो महाराष्ट्र के सहयाद्री श्रेणी में स्थित है, से मुम्बई-पुणे-बेलगांव-चेन्नई से रेलमार्ग व सड़क मार्ग गुजरते है। नीलगिरी व अन्नामलाई श्रेणियों के बीच केरल में स्थित पालघाट दर्रे से कालीकट त्रिचूर-कोयम्बटूर- कीडार रेल व सड़क मार्ग गुजरते हैं।
कालसूबाई सहयाद्री श्रेणी की सबसे ऊँची श्रेणी है जबकि कृष्णा नदी का उद्गम स्थल महाबलेश्वर दूसरी प्रमुख चोटी है। डोडाबेटा नीलगिरि पर्वत की सर्वोच्च ऊँचाई है। उटी या उटक मण्डक नीलगिरि में स्थित पर्यटन स्थल है। अन्नामलाई पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी अन्नामुडी है। जो दक्षिण भारत की सर्वोच्च चोटी है। अन्नामुडी के निकट ही पालनी व इलायची पहाड़ियाँ स्थित है।
पूर्वीघाट महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियों द्वारा जगह-जगह काटे जाने के कारण शंृखलाबद्ध रूप में नहीं मिलती। उड़ीसा में स्थित महेन्द्रगिरि पूर्वी घाटी की सर्वोच्च चोटी है। पूर्वीघाट को उत्तरीघाट में उत्तरी पहाड़ी, दक्षिण में तमिलनाडु पहाड़ी तथा मध्य में कुडप्पा पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। नल्ला-मल्ला, एरमिल्ला, बेलिकोण्डा व पालकोण्डा कुडप्पा पहाड़ी के एवं शिवराय व जवादी तमिलनाडु पहाड़ियों के अन्तर्गत आते हैं। पूर्वीघाट की औसत ऊँचाई 600 मी है।
उत्तर भारत का विशाल मैदान :-
इस मैदान का लम्बवत विस्तार 3200 किमी0 एवं चैड़ाई 150-300 किमी0 है। इसे ’सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र’ का मैदान भी कहा जाता है। इस मैदान में जलोढ़ अवसादों का निक्षेद 200 मी0 तक की गहराई तक मिलता है। यह विशाल मैदान अत्यधिक कम उच्चावच वाला है। अम्बाला के आसपास की भूमि इस मैदान में जल विभाजक का कार्य करती है। क्योंकि इसके पूर्व में स्थित नदियां बंगाल की खाड़ी में तथा पश्चिम में स्थित नदियां अरब सागर में गिरती हैं।
धरातलीय संरचना के आधार पर उत्तर भारत के विशाल मैदान को निम्नलिखित चार भागों में बांटा जा सकता है –
(1) भावर प्रदेश :- भावर प्रदेश 8-16 किमी0 की चैड़ाई लिए हुई यह प्रदेश शिवालिक की तलहटी में सिंधु से लेकर तिस्ता तक फैला है। नदियों द्वारा लाए गए छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों के कारण इसमें पारगम्यता अधिक है जिस कारण यहाँ नदियाँ विलीन हो जाती है।
(2) तराई प्रदेश :- तराई प्रदेश एक दल दलीय प्रदेश है यहीं पर भावर प्रदेश की लुप्त नदियाँ ऊपर आ जाती है। यह प्रदेश भावर प्रदेश के दक्षिण में मिलता है तराई प्रदेशों में जैव विविधता का विशाल भण्डार पाया जाता है।
(3) बांगर प्रदेश :- यह मैदानी भागों का वह उच्च भाग है जिसका निर्माण पुरानी जलोढ़ो से हुआ है। इस क्षेत्र में कंकड़, पत्थर व रेत की मात्रा अधिक पाई जाती है जिसके कारण असमतल उच्च भूमि का निर्माण होता है जिसे स्थानीय भाषा में ’भूड़’ कहा जाता है।
(4) खादर प्रदेश :- ये नवीन जलोढ़ों से निर्मित मैदान है। यहाँ बाढ़ हर वर्ष नई उर्वर मिट्टी का निक्षेप करती रहती है। इस क्षेत्र को कछारी प्रदेश या बाढ़ का मैदान भी कहते हैं। इसका विस्तार डेल्टा प्रदेश के रूप में ही हुआ है। गंगा, ब्रह्मपुत्र डेल्टा इसका उदाहरण है।
तटवर्तीय मैदान :-
प्रायद्वीपीय पठारी भाग के दोनों ओर स्थित मैदानों को पूर्वी तटीय एवं पश्चिमी तटीय मैदान कहते हैं जिनका निर्माण सागरीय मैदानों के अपरदन व निक्षेपण एवं पठारी नदियों तरंगों के अवसादों के जमाव से हुआ है।
पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार गुजरात से कन्याकुमारी तक है जो बीच-बीच में पहाड़ी भू-भाग लिए हुये एक सकरी जलोढ़ पट्टी है। गुजरात से गोवा तक का तटीय मैदान कोंकण कहलाता है, जबकि गोवा से कर्नाटक के मंगलौर तट का क्षेत्र कन्नड़ तट कहलाता है । मंगलौर से कन्याकुमारी तक का तटीय मैदान मालावार तट कहलाता है। यहाँ लैगून अत्यधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
द्वीपीय भाग :-
भारत के द्वीपीय भागों में अण्डमान निकोबार व लक्षद्वीप समूह प्रमुख हैं। बंगाल की खाड़ी में अवस्थित अण्डमान निकोबार केन्द्र शासित प्रदेश है जो म्यामार स्थित अराकान योमा पहाड़ का दक्षिणी विस्तार है। अण्डमान-निकोबार समूह में 222 द्वीप हैं जिनमें 204 द्वीप अण्डमान समूह के और 18 द्वीप निकोबार समूह है। इस द्वीप का सबसे उत्तरी द्वीप लैण्डफाॅल है। कोको जलमार्ग इसे म्यामार के कोको द्वीप से अलग करता है।
नारकोण्डम द्वीप में दो सुषुप्त ज्वालामुखी एवं बैरंग द्वीप में एक सक्रिया ज्वालामुखी है। सैडल पीक उत्तरी अण्डमान द्वीप पर दिगलीपुर के निकट स्थित है जो अण्डमान द्वीप समूह का सर्वोच्च शिखर है, जबकि निकोबार द्वीप समूह का सर्वोच्च शिखर माउण्ट थूलियर है। अण्डमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है। 10 डिग्री चैनल अण्डमान द्वीप समूह को निकोबार द्वीप समूह से अलग करता है।
इन्द्रा प्वाइंट जो भारत का दक्षिणतम बिन्दु है ग्रेट निकोबार द्वीप पर स्थित है।
लक्षद्वीप समूह अरब सागर में प्रवाल द्वीप से निर्मित है लक्षद्वीप का कुल क्षेत्रफल 32 वर्ग किमी0 है। लक्षद्वीप समूह में कुल द्वीपों की संख्या 36 है जिनमें केवल-11 ही आबादी वाले हैं कवरत्ती लक्षद्वीप की राजधानी है। लक्षद्वीप के उत्तरीय द्वीप समूह को अमीनदीवी तथा दक्षिणी द्वीप समूह को मिनीकाय कहते हैं। मिनीकाॅय शेष द्वीपों से नौ डिग्री चैनल द्वारा जबकि मालद्वीप से 8 डिग्री चैनल द्वारा अलग होता है।
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